मेरा नाम विशाल है। मैं उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के एक छोटे से गाँव का रहने वाला हूँ। मेरा जन्म एक माध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। मेरी उम्र 24 वर्ष है। मैंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गाँव के ही एक छोटे से स्कूल से पूरी की। हाईस्कूल, नवोदय विद्यालय चंदौली, उत्तर प्रदेश और इंटरमीडिएट, नवोदय विद्यालय आजमगढ़, उत्तर प्रदेश से पूरी की। मैंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से कॉमर्स में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की । अभी भी एक विद्यार्थी ही हूँ...
आज ही अपना ब्लॉग शुरू किया है। उम्मीद है आपको पसंद आएगा। मुझे लगता है ये सबसे बेहतरीन मंच है अपनी बात लोगों तक पहुंचने का। यहाँ मैं सभी चीजें आपसे साझा करना चाहूँगा। वो सब जिनसे मुझे प्रेरणा मिली, दुःख पहुँचा, ख़ुशी हुई या हंसी आई या घुटन महसूस हुई। इस ब्लॉग पर आपको मेरे विचार, मेरे अनुभव और सुझाव एवं निर्देश भी मिलेंगे। वो किसी खास विषय या सन्दर्भ में हो सकते हैं जैसे - व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक, नीतिगत, प्रौद्योगिक, समीक्षात्मक एवं कोई विशेष खबर सम्बंधित ब्लॉग। यहाँ आपका तहेदिल से स्वागत है। आप आइये पढ़िए और मुझे बताइये की आपको कैसा लगा। आप अपने सुझाव भी दे
सकते हैं।
आज के लिए मन की एक व्यथा का एक बहुत ही छोटा सा वो अंश जिसका शायद हर किसी ने अपनी जिंदगी में कभी न कभी अनुभव किया होगा -
हमारे यू० पी० और बिहार में एक बात बहुत प्रसिद्ध है - "कहा जाता है की जो कुछ नहीं करता वो तैयारी करता है /" हम भी चल रहे हैं उसी रास्ते पर मंजिल की तलाश में। हमारे यहां लोगों में एक पुरानी धारणा है। वो ये कि जो सरकारी नौकरी या किसी प्रतिष्ठित या किसी सम्मानजनक पद पर नहीं है तो ये उसकी बहुत बड़ी कमी या विफलता है। समाज में उसे हीनता भरी निगाहों से देखा जाता है। अजी औरों की बात तो छोड़िये अपने ही आपको शशंकित नज़रों से देखते हैं। मानो कितना बड़ा गुनाह हो गया हो। हमारे समाज में लोग दूसरों की जिंदगी से खासा प्रभावित होते हैं। फलां का रहन- सहन , खान- पान , वेष - भूषा इत्यादि। लोगों को लगता है की सामने वाले की जिंदगी में वो सब है जो मेरी में नहीं। व्यक्ति समझ ही नहीं पाता कि सामने वाला इंसान भी उतना ही व्यथित है जितना की वो खुद। सम्मान, पद, प्रतिष्ठा की भूख सभी को होती है। पर इसे पा लेने मात्रा से ही कोई व्यक्ति सफल या असफल कैसे हो सकता है?
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